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किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

उनका भी इक ख्वाब हैं।

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 उनका भी इक ख्वाब हैं ख्वाब कोई देखूं मैं उनसे उन्ही की तरह लच्छेदार बात फेकूं मैं। टिकाया है जिस तरह सर और के कंधे पर चाहती है सर अपना किसी और कांधे टेकूं मैं। शौक था नये नजारों का यूँ तो सदा ही देखि ओ चाहत है उसकी कि  कहीं और नयन सेकूं मैं। दिल से उसे निकाल कर बचा हूँ कितना खुद में वक्त मिले गर खुदा, तो  खुद को खुद से देखूं मैं। समझदारी प्यार को भी व्यापार बनाती है प्रेम मिले भी अगर शिशु की भांति देखूं मैं। बेशक़ तेरे चाहने वालों की भीड़ बहुत भारी है गर दिल से उतर गयी तो लानत है मेरे व्यक्तित्व पर जो इक बार पलट कर देखूं मैं।

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  खता   किसी   की   है सज़ा कोई काट रहा है दो सिरफिरों के कारण इंसान गला काट रहा है। मुल्क-ए-शान अपनी जगह है सीमा- सरहदें अपनी जगह है कुरुरवादीकता का  आलम  है आम आदमी सजा काट रहा है। इससे  पहले  की   मानवता  खत्म  हो पल भर की करतूत सदियों का जख्म दे हमें इंसानियत की तलवार उठाना होगा इस  युद्ध  पर हमें  विराम लगाना  होगा।

बस रोने को ही जी चाहता है।

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  बस  रोने  को   ही   जी   चाहता  है जाने  क्या खोने  को  जी  चाहता है।  बचा   नही   कुछ    भी    अब   मेरा जाने किसका होने को जी चाहता है।  लिपट  कर  रोती  है  ये रात भी रात भर जाने किसके संग सोने को जी चाहता है।  दौलत खूब कमाया उदासी और तन्हाई भी जाने  किस   खजाने  को   जी  चाहता  है।  इर्ष्या  द्वेष  कलह  फ़सल  सारी  तैयार  है जाने कौन सा बीज बोने को जी चाहता है।  ओढ़  ली   कफ़न   खुद   से   रूबरू   होकर जाने कौन सी चादर ओढ़ने को जी चाहता है।

तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।

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  जो  अमृत  है  ओ  ज़हर  कैसे  हो तेरे  बिन  जिंदगी  बसर  कैसे  हो। ख़्वाबों के अपने  सलीक़े अलग  हैं उजालों में  इनका  असर कैसे  हो। इंसानियत  प्रकृति  की  गोद  में  हो वहां  कुदरत   का   कहर  कैसे  हो। घरों की पहचान बाप के नाम  से हो वह  जगह   कोई   शहर   कैसे  हो। पीने  के  योग्य  भी  न  रह  गया  हो वह  जल स्रोत  कोई  नहर  कैसे  हो। खुदगर्ज़ी की बांध से जो बंध गया हो उस सागर में फिर कोई लहर कैसे हो। ढल  गया  हो  दिन  हवस की दौड़ में फिर उसमें सांझ या दो पहर कैसे हो।

Happy kiss day.

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  अच्छे को अच्छा,  बुरे को बुरा कौन कहेगा चा पलूसी के जहां में अब खरा कौन कहेगा। हथेली चूम मोहब्बत -ए- इबारत लिखते थे हवस के दौर में बसंत को हरा कौन कहेगा। सतरंगी  जीवन  में  मरने  के  तरीके  बहुत हैं इश्क  में  मरने  को  अब  मरा  कौन  कहेगा। बदन की भूख में पलने वाले इश्क का  दौर है माथा चूम के,शब्द ,प्यार से भरा,कौन कहेगा। दिखावा ने असल दुनिया से बेदख़ल कर दिया अब  फीके  पकवान  को  सरा  कौन  कहेगा। थोड़े में लिबास ज्यादा ओढ़ने का रस्म है साहब अब  ज्यादा  हैसियत  को  ज़रा  कौन  कहेगा।

इस  क़दर  भी  न   सताया  करो।

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  पास  आकर  न  दूर  जाया  करो इस  क़दर  भी  न   सताया  करो। ख़्वाबों   के    दरमियां   फासले  हैं न  ख्वाबों  से  तुम  घबराया  करो। जिंदगी की  असली  कमाई  तुम हो मेरी  कमाई  से न मुकर जाया करो। दिल  दे  दिये  हो तो भरोसा रख्खो हर  जगह  न  हाथ आजमाया करो। गम-ए-जिंदगी  जीना तो आसां नहीं मग़र थोड़ी थोड़ी तो सुलझाया करो सभी को आईने दिखाना जरूरी नहीं गिरेबां में अपने भी झांक जाया करो। गर हो गया हूँ रुस्वा तो थोड़ा ध्यान दो कभी कभार तो हमें भी मनाया करो। बेसक नहायी हो तुम नीली झील में वक्त रहते केशुओं को सुखाया करो। सवांरती फिरती हो जिन ज़ुल्फों को उन जुल्फों में न हमें उलझाया करो। ये  इबादत के दिन  हैं तो सुनो दरिया खुदा  की रहमतों में मुस्कुराया करो। अपनी आदतों से क्यूं बाज नहीं आती मु आंख तुम इतना न मटकाया करो।

जहां कल था वहीं आज हूँ।

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 जहां कल था वहीं आज हूँ मैं  ही  रस्म-ओ-रिवाज़  हूँ।  लड़की  की  आबरू हूँ  मैं और मनचलों पर गाज  हूँ।  बुर्का  और   घूंघट  भी  हूँ मैं  ही  जलता  समाज  हूँ।  मैं  मोहब्बत  और ताज हूं मोहब्बत  को मोहताज़ हूँ।   फसल   और   किसान  हूँ मैं  ही  गांव  का अनाज हूँ। संस्कारों    का   गिद्ध    हूँ जिम्मेदारियों  का  बाज हूँ। बसपा   का   प्रशासन   हूँ मैं  सपा  का  गुंडा  राज हूँ। कर्मों   का    योगी   हूँ   मैं अयोध्या  का  राम राज हूँ। सपनों    का     सूरज    हूँ मैं  ही   डूबता   जहाज़  हूँ। खामोशी   का   समंदर   हूँ मैं   वक्ता   चाल   बाज  हूँ।

नाज़ुक दिल है ज्यादा मत दुखाना।

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  भूले   से   भी   जान  भूल  मत  जाना नाज़ुक  दिल  है  ज्यादा  मत  दुखाना। आ  गया  हूँ  मैं धनवानों की कतार में जान  तू  ही  है  मेरा  असली खजाना। प्यार  तुमसे  है,  बस  यही  था  कहना आता  नहीं  मुझे  ज्यादा  बातें  बनाना। चाह  है  मिलने  की  हम  मिलेंगे जरूर रोक सकेगा  कब  तक  बेरहम जमाना। ख्वाबों का कोई शहर  होता नहीं दरिया बस  प्यार  से  प्यार  का  ध्यान लगाना। आ जाये आँशुओँ  का सैलाब जो कभी इक बार सनम की आंखों में डूब जाना। अनजान था इश्क़ की गुमनाम गलियों से आता  नहीं  मुझे खुद का वज़ूद मिटाना। बिरह  का  दिन  ऐसा भी होता है दरिया भूल  गयी  ओ  हाथों  में  मेंहदी लगाना। जीने  का अंदाज बदल दिया  कोरोना ने सीख  लिया  हमने  नयनों से मुस्कुराना। महसूस  करता  हूँ  महफूज़ तेरी बाहों में न चाहिए इससे बेहतर कोई आशियाना। जो कह दिया सो कह दिया सोंचना क्या आता  नहीं  मुझे  बातों  से  मुकर जाना।

जिसने ख़ुद को मिटा दिया मेरे खातिर।

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  मैं लड़ता ही कब तलक उससे आख़िर जिसने ख़ुद को मिटा दिया मेरे खातिर। उसकी तो मजबूरियां  थी बिछड़ने की इल्ज़ाम  बेवफ़ा  का लिया मेरे खातिर। बेशक   था  मैं   मोहब्बत   का  दरिया तरस गया हूँ  इक बूंद प्यार के खातिर। जिस्म-फ़रोसी से निकाल कर लायी है उससे ज्यादा उसका दिमाग था शातिर। चलो  अब  इक   राह   नयी   बनाते  हैं कुछ और नहीं ,अपने प्यार  के ख़ातिर। दुनिया  का  एक  सच ये  भी  है 'दरिया' भेंट   होती   रहती   है  पेट  के  ख़ातिर। सेहत  गिरती   रही  मेरी  दिन  -  ब - दिन पीछे  भागता  रहा   मैं  स्वाद  के ख़ातिर। हर   कोई   तुम्हारा    हम   दर्द  है   दरिया तरसोगे  नहीं   चुटकी  भर  नमक ख़ातिर। उलझ  जाते  हैं  सारे  रिस्ते  सही  गलत में लड़ना  पड़ता   है   यहां   प्यार  के ख़ातिर। हर  फ़ैसला  हमारा  सही  हो ज़रूरी तो नहीं बहुत कुछ करना पड़ता है व्यापार के ख़ातिर।

मेरी   सुबह   की  सलाम   ले  जाना।

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  मेरी   रातों   की   नींद   उड़ाने   वाले मे री   सुबह   की  सलाम   ले  जाना। खामोशियों   के  अनछुये   रिश्तों   से इश्क़  का  तकिया  कलाम  ले  जाना। जा रही  हो  तो  सुनो  इक बार सनम साथ,अपने दिल का निज़ाम ले जाना। तेरे  इशारों पे  नाचता  फिरता था जो साथ अपने जोरू का गुलाम ले जाना।

नाम उसका फरिश्तों में आ जाये।

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ओ शरारतें, शैतानियां और लड़कपन जी करता हम पुराने रिस्तों में आ जायें। ताकना, झांकना, एक दूजे को डांटना भले खुशियां हमारी किस्तों में आ जायें। कोई शख़्स ऐसा जो मिला दे फिर से हमे यकीनन नाम उसका फरिश्तों में आ जाये। चुन लें कुछ फूल हम भी पुराने लम्हों से फिर तो नाम हमारा मौला-मस्तों में आ जाये। मिल जाऊँ उसे आज भी आसानी से गर नाम मेरा बड़े सस्तों में आ  जाये।

हमें भी पिला दो।

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कोई  राह  हमें  भी  दिखा दो चलना  तो  हमें  भी सिखा दो। भटक रही है दर-बदर जिंदगी किसी ठिकाने हमें भी लगा दो। कब तक रहेंगे मजधार में ख़ुदा किसी किनारे हमें भी लगा दो। सोया सोया स है ये जुनून मेरा अब तो नींद से हमें भी जगा दो। बन्द क़िस्मत का ताला जो खोल दे ऐसे जादूगर से हमें भी मिला दो। जिस प्याले को पीकर अमर हुये दो बूंद उसका हमें भी पिला दो। लगाये रखा जिसने सीने से हमें मिटा उसके सारे शिकवे गिला दो तेरे आशियाने में रोशनी कम हो मेरे दिल का हर कोना जला दो। यूं तो मिले होंगे तुझे लाखों सनम इक बार खुद से हमें भी मिला दो।

जब से 'जान' तेरा जाना हुआ।

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जिस्म-ए-जान बेगाना हुआ। जब से 'जान' तेरा जाना हुआ चीख पड़े तकिया बिस्तर भी जब से 'जान' तेरा जाना हुआ छुप - छुप के रोती है छोटी भी बड़ी का गायब मुस्कुराना हुआ आंगन में मां सिसकती रही बाप का गायब तराना हुआ। चेहरा भाई की भी हवाई हुआ अश्क-ए-पलक जमाना हुआ। कली गली की भी सूख गयी उजड़ा चमन स घराना हुआ।

जीवन का हर हिस्सा बंजर रहा।

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  मुसीबतों के साये में लंगर रहा जीवन का हर हिस्सा बंजर रहा। कोई कितना यकीं कर ले दरिया तू घोंपता पीठ पीछे खंजर रहा। मंजिल -ए-इश्क़ तो जिस्म ही है हवस का भूख और हंगर रहा। डटा रहा मैं रिश्तों के कुरुछेत्र में पाया टूटा मेरा अस्थि पंजर रहा। कोशिश तो बहुत की तुझे पाने की किस्मत का पहिया सदा पंचर रहा।

उन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाएं।

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  जो  हालात  से  लड़े और खड़े रहे जो  गिर  गये  धरा पे और पड़े रहे। उन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाएं। जो  प्रयास  किये  और  बढ़ते  रहे नित  नये   कीर्तमान   गढ़ते   रहे। उन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाएं। जो  उम्मीदों  के  साये में जीते रहे और  घूंट   ज़हर   का   पीते  रहे। उन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाएं। जो  जी  भर  के  अनुभव  लिये धन  , संपदा  और  वैभव  लिये उन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाएं। जो  हाथ  पे   हाथ  धरे   रह   गये और  आँख  में  आँशु  भरे  रह गये उन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाएं। जो  लाज  के  काज  से  परे   रहे और  कर्म  के  साज  से  सजे  रहे उन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाएं। जो  सूरज  की  आग  में जलते रहे और चंद्रमा की शीतलता भरते रहे उन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाएं। जो   शीप   से   मोती   लेते   रहे ख़ुद   को  मोती   से  भरते   रहे उन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाएं। जो ख़्वाबों की दुनिया  में जीते  रहे और  जुल्फों  के  साये  में सोते रहे उन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाएं। जो  लाठी  डंडों   से   पढ़ाते   रहे और शव्दों से सबको जलाते  रहे। उन्हें भी नव वर्ष की शुभ

आसमां के दिलों पर वही राज करते हैं वक्त पर जो वक्त से प्यार करते हैं।

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  आसमां के दिलों पर वही राज करते हैं वक्त  पर  जो  वक्त  से  प्यार  करते हैं। धूमिल  नहीं  होती  है  कभी छवि उनकी जो कर्मो के हुनर से तूफान पैदा करते है।

हुनर जीने का जाए।

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  जीवन की काल परिधि से निकलना  हमें  आ  जाए। हुनर  जीने  का  आ  जाए तो जीना आसान हो जाए। रोती  हुयी  आंखों  को खुशी  देना  आ  जाए मायूस  चेहरे  को   गर हँसाना  मुझे  आ  जाए तो हुनर जीने का जाए।

रास्ता खुद बन जायेगा।

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  तुम  कदम  तो  बढाओ रास्ता खुद बन जायेगा। तुम चलना तो सुरु करो कारवां खुद बन जायेगा। पथ मिलेंगे तुम्हें पथरीले और सर्प भी कुछ ज़हरीले तू सब पर चलकर जाएगा हौंसल रख रास्ता खुद बन जायेगा। जो छूट रहे हैं पीछे उनको  छूट  जाने दे जो रूठ रहे हैं तुझसे उन्हें  रूठ  जाने  दे लगा निशाना चिड़ियाँ की आंख पर मंज़िल चल कर आएगा तुम  कदम  तो  बढाओ रास्ता खुद बन जायेगा। छाएंगे  घने  बादल  भी कड़केंगी बिजलियां भी ये  अंधेरा  तुम्हें डरायेगा उसी में कोई जुगनू तुम्हें छोटी सी रोशनी दे जाएगा तुम   कदम   तो   बढाओ रास्ता  खुद  बन  जायेगा। परिस्थितियां तड़पेंगी और चिल्लाएंगी तेरे  आगे  मजबूरियां बौनी हो जाएंगी तू  सूरज की  तरह निकल कर आएगा तू कदम तो बढ़ा रास्ता खुद बन जाएगा। वक्त है फैसला लेने का ये वक्त बार बार न आएगा चूक गया गर तू आज जिंदगी भर पछतायेगा तू   कदम   तो   बढ़ा रास्ता खुद बन जाएगा।

जलने दो चरागों को बुझाने से फायदा क्या है।

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  सूरज न सही, हिस्से का अंधेरा तो मिटाएगा जलने दो चरागों को बुझाने से फायदा क्या है। महफूज़ है इश्क़ ताजमहल की संगमरमरी बाहों में फिर  रहने  दो, उसे  गिराने  से  फायदा  क्या  है। जब  आंखों  में  समाया  है  ये  बेदाग़ बदन मेरा फिर   रूह  में  उतर  जाने  से  फायदा  क्या  है। उड़ान  भर  ली  है  जिसने, उसे  उड़  जाने दो बार    बार   गिराने    से    फायदा    क्या   है। सज्जनता  अपनी   परवरिश   खुद  करती  है उसे   खोफ   दिखाने    से   फायदा   क्या  है। गिर चुका है ओ लोभ की असीमित गहराई में गिरी  हुयी  चीज़ को उठाने से फायदा क्या है।

आप यूं ही मुस्कुराती रहना।

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  खुशियों      का    भंडार   है नई    रंगत    नई   बहार   है आप  यूं  ही मुस्कुराती रहना हमारी  तरफ से ये उपहार है। जिंदगी  इतनी  मकबूल  हो की   हर  दुआ   कबूल   हो चाहें  तो  आसमां  झुका  ले अपनी सल्तनत का वसूल हो। जिंदगी  को  ऐसी  ग़ज़ल दें गमों को चुटकी  में मसल दें किस्मत   बुलंद   हो   इतनी की हवाओं का रुख बदल दें। ममता का ऐसा आंचल मिले, की आंखों में चमकता काजल मिले हसरतें  इतनी  जवान  हों, की मुटठी में सिमटता बादल मिले।

कोई इतना प्यार कैसे कर सकता है।

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  दवा   को   दावे    के    साथ   और पानी  का   पाचन  करा  सकता  है कोई इतना प्यार कैसे कर सकता है। सुबह  चुम्बन के साथ आंखें खोलकर रात को मीठी यादों संग सुला सकता है कोई  इतना  प्यार कैसे कर सकता है। मन  की भूख  को  चेहरे के  प्रताप से तन की , आंखों से सांत करा सकता है। कोई  इतना  प्यार कैसे कर सकता है। जिंदगी की  इस  बेजोड़ ठिठुरन में भी गर्म कम्बल का अहसास करा सकता है कोई  इतना  प्यार  कैसे कर सकता है। पलकों से  आँशुओँ के मोती चुराकर चेहरे पर प्यारी मुस्कान ला सकता है। कोई  इतना प्यार कैसे कर सकता है। मेरी आदतों को अपना गहना बनाकर अपने सांसों के तन को सजा सकता है कोई  इतना प्यार  कैसे कर सकता है।

ख़्वाब के इंतज़ार में

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 ख़्वाब के इंतज़ार में ख्वाब के इंतजार में  सारी रात गुजारी हमने।  चाहत इश्क की थी, और  की नींद से मारा मारी हमने। बुलंदियां त्याग चाहती थी की वक्त से साझेदारी हमने मुकम्मल मंजिल न हुयी की खुद से गददारी हमने। सज़ा के लिये था तैयार  की दिखायी होशियारी हमने  रच दिया सडयंत्र ऐसा  की न आने दी अपनी बारी हमने। • रामानुज "दरिया" - YourQuote.in

अर्थ को सार्थक होने दो

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  शब्द को साधक और अर्थ को सार्थक होने दो रुको अभी थोड़ा सा पथिक को पार्थक होने दो। सुना है बनते हैं वही जो भरपूर बिगड़ जाते हैं  "दरिया" खुद को अभी और निरर्थक होने दो - रामानुज "दरिया" YourQuote.in

समय से पहले जवान हुयी मैं।

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  समय से पहले जवान हुयी मैं अपनी गलियों में बदनाम हुयी मैं। न चल सका पता घर वालों को अपने मुहल्लों में सयान हयी मैं। छुप कर ही चली हर नजर से मैं पर नजरों से ही परेशान हुयी मैं। लेकर तालीम सदा ही चली में फिर भी अंधेरों में हैरान हुयी मैं। पकड़ कर हाथ उस पार चली मैं रह गयी बस कटी हुयी मयान मैं। दर्द छलका जब तेरे आगे दरिया समाज में राजनीतिक बयान हुयी मैं।

बता तेरी कौन हूँ मैं।

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 रगों में बहने वाले, लवों से पूछते हैं बता तेरी कौन हूँ मैं सुनकर तेरे सवालों को होता जा रहा  अब तो मौन हूँ मैं। ओ वक्त भी क्या वक्त था जब मैं उसका था अब तो रह गया पौन हूँ मैं। रंग भरकर जिंदगी बे रंग करने वाले देख अब भी जॉन हूँ मैं। लेकर भूल जाने का हुनर तुझमें है बेवक्त सताऊंगा, बैंक का लोन हूँ मैं। कितनी मिन्नतें की थी तुझे पाने के खातिर आज भी किया हौंन हूँ मैं।

मालूम न था इस कदर हो जाऊंगा मैं।

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  मालूम न था इस कदर हो जाऊंगा मैं अपनों के लिये ही ज़हर हो जाऊंगा मैं ओढ़  लूंगा  मैं अय्याशियों के लिबास फिर  फ़ैशन  का  शहर हो जाऊंगा मैं। दिन  ब  दिन  दूषित होता जा रहा हूं लगता  है  नाला - नहर हो जाऊंगा मैं। उमस  भर  गयी  रिश्तों  में  इतनी कि लगता है जून के दोपहर हो जाऊंगा मैं। मेरे   किरदार  में   ओ चमक  न  रही कि  बनकर  तिरंगा  फहर  जाऊंगा  मैं। आवाज़ कितनी भी आये मन्दिर-ओ-मस्जिद से लगता   है   कि   अब   बहर  हो   जाऊंगा   मैं।

तो कोई बात हो।

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में पुकारूं आपको ओर आप मिलने चले आओ          तो कोई बात हो। अधूरे ख्वाब में भी गर आप मुक्कमल हो जाओ          तो कोई बात हो।  सूखी दरिया में दो बूंद प्यार के डाल जाओ           तो कोई बात हो। बेचैन बाहों को भी कभी पनाह दिलाओ           तो कोई बात हो। सिसकती आंखों को भी कभी इक झलक दिखाओ           तो कोई बात हो। जिस्म को चाह कर भी तुम रूह में उतर जाओ           तो कोई बात हो। जवानी का बूढ़ा खत हूँ मैं तुम पढ़ के मुस्कुराओ            तो कोई बात हो। भागता फिरता हूँ तेरे पीछे कभी तुम भी मुड़ जाओ             तो कोई बात हो।  

आप जो दिल में हिल गये।

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  पुर्जे पुर्जे शरीर के हिल गये आप जो हमसे मिल गये। कुछ अमीरी सी आ गयी है आप जो दिल में हिल गये। आंखें अब बात करती हैं ओंठ जब से सिल गये । प्रयास बर्बादी का ही है जो सत्ता विपक्ष मिल गये । मिटाने की अब साज़िस है मंत्री और दरबारी मिल गये।

जब से तुम मिली हो सनम।

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जब से तुम मिली हो सनम दरिया में रवानी सी लगती है ख़ामोश लव और आंखों में खुशियों की पानी सी लगती है। जब से तुम मिली हो सनम जिंदगी कहानी सी लगती है मुक्कमल ख्वाब हो गये औऱ बुढ़ापा जवानी सी लगती है।  

कोशिश-ए-अहसास।

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ये  हवा  तू  उसके  पास  जाना जुल्फों को उसके ज़रा सहलाना आंखों  में  इक   फूंक  लगाकर मेरे  होने  का  अहसास  कराना। ये खुशबू तू भी उसके पास जाना सांसों  में  उसके  ज़रा घुल जाना कैद   कर    लाना    साथ   अपने उसकी महक का अहसास कराना। ये   काज़ल   उसके   पास   जाना बनकर सुरमा आंखों में लग जाना ज़रा  सा  साथ   अपने   ले  आना मेरी आँखों में उसकी छवि दे जाना रामानुज "दरिया"  

जिंदगी - ए- राह में क्या - क्या नहीं देखा।

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  जिंदगी - ए- राह में क्या - क्या  नहीं  देखा रोती  खुशियां  और  विलखते  गम  देखा। यूं  तो  बहारों  का  मौसम  खूब रहा मगर अपने  हिस्से  में  इसका असर कम देखा। छोड़  रही  थी   स्याह,   साथ   कलम  की तभी  किस्मत  को  वहां  से  गुजरते  देखा। हवा    की    तरह   उनको    गुजरते   देखा फिर  उम्मीदों  को   अपने   बिखरते  देखा। लत  लगी  थी  साहब  तो  लगी ही रह गयी हमने  खामोशियों  को  दिल में उतरते देखा।

गर देखना ही है तो अपने आप को देखिये।

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  दुखती   हथेलियों   से   जिंदगी  के   ताप  देखिये गर   देखना  ही  है  तो  अपने  आप  को  देखिये। कोई  आयेगा  नहीं  हिस्से  का   अंधेरा   मिटाने उठाइये  चरागों  को  और  उसका  ताप  देखिये। ज़रूरत  नहीं  किसी  के  पैरों  में  गिड़गिड़ाने की उठाइये कदम और मंज़िल तक की नाप देखिये। ये  दुनिया  तुम्हें  हंसीन सपनों जैसी दिखायी देगी बस  एक  बार  बदलकर खुद अपने आप देखिये। इस   दौर  में  गली  गली  नुमाइशें करती फिरती है यकीं  नहीं  होता,  आप  द्रोपदी  का  श्राप देखिये। असुरों  के  संगत  में  बनकर  देवता  रह सकते हो बस  दृढ़  संकल्प  के  साथ  ध्रुव  का  जाप देखिये। गधे  और   घोड़े  में  फ़र्क  दिख  जायेगा  तुम्हें  भी उतारिये    रेस    में    फिर   उनका   टॉप   देखिये।

फ़ना उसी दिन मुझे मेरे खुदा कर देना।

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  उसके ख्वाबों से एक दिन जुदा कर देना फ़ना उसी दिन मुझे मेरे खुदा कर देना। ख़्याल रहे कि उसकी परछाईं भी न पड़े दरिया  खुद  को   इतना  जुदा  कर देना। झोपड़ी  महलों  से  भी  सुंदर  लगने  लगे मोहब्बत  कुछ  ऐसी  ही  अता  कर  देना। तुम्हें  चाहे  न  चाहे  दरिया  उसकी  मरज़ी मग़र दिल अपना उसी पर फ़िदा कर देना। महसूस हो कि प्रेमिका भी साथ नहीं देगी फिर ख़ुद को भी तुम शादी शुदा कर देना।

गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया।

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 गर हवाओं से इज़ाज़त लेनी पड़े सम्माओं को जलाने के लिये ताक पर रख दो जज़्बात अपने रखो अहसासों को भी आग में जलाने के लिए गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया ख्वाबों में भी आने के लिये सुलगा दो ये जिस्म भी अपना उसकी यादों को जलाने के लिये। गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया उसे मिलने बुलाने के लिये तप्त कर दो धरा को भरपूर जमीं से परिंदों को उड़ाने के लिये। गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया उनसे बातें करने के लिये जला कर राख कर दो उस पल को जिसमे ख्याल आया हाले दिल सुनाने के लिये। गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया हुस्न -ए- दीदार करने के लिये बहा दो आँशुओं की दरिया हुस्न को भी बहाने के लिये। गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया को कस्तियां डुबाने के लिये तू रेत का ढेर हो जा दरिया तरसे मल्लाह कस्तियां तैराने के लिये।

कुंठित मानसिकता।

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 मेरी सोंच उस आधुनिकता की भेंट नहीं चढ़ना चाहती थी जिसमें एक लड़की के बहुत से बॉयफ्रेंड हुआ करते हैं और ओ जब जिससे चाहे उससे बात करे  , जहां जिसके साथ चाहे घूमे टहले , ओ आधी रात को आये या दोपहर को , मैं आशिक हूँ तो आशिक की तरह रहूं, उसे रोकने टोकने का मुझे कोई अधिकार न रहे। अगर इसे आधुनिकता और आधुनिकता में छुपी अय्यासी को ही आज़ादी कहते हैं तो मुझे सख़्त नफ़रत है उस आज़ादी से और उसका अनुसरण करने वाले आज़ाद पंछी से। इतने दिन बाद भी कोई दिन नहीं बीतता जो उसकी यादों के बगैर गुजर जाये क्योंकि मैंने उसे चाहा है दिल की अटूट गहराई से , जिस्म की आंच से भी उसे बचा के रखा है।नफ़रतों के साये तक न पड़ने दिया है उस पर।जिंदगी की एक अनमोल धरोहर की तरह मैने उसे छुपा के रखा है उसे अपने दिल के किसी कोने में जहां सिर्फ और सिर्फ ओ रहती है उसके सिवा कोई नहीं। अपने रिस्ते के धागे और उसके अदाओं की मोती की जो प्रेम रूपी माला बनाई है उसकी इकलौती वारिस और मालिकाना हक भी सिर्फ वही रखती है। निरंतर बहते नदी की धारा की तरह एक प्रेम का प्रवाह दूंगा उसे मैं। भले इसके लिए मुझे कितना भी कुंठित क्यों न होना पड़े। हां हां मैंने प्

हम खुद से मिलकर आये थे।

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  उम्मीदों  के  साये  मँडराने  लगे ओ हमें देख कर मुस्कुराने लगे। हम भी ज़रा ठिठुक गये थे चलते चलते जब ओ रुक गये ख़ामोशी से पलकें उठाये थे हम खुद से मिलकर आये थे।

इश्क़ में वापसी का कोई रास्ता नहीं होता।

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  झलक   देख  कर  फ़लक  तक  जाने  वालों इश्क़  में  वापसी  का  कोई  रास्ता नहीं होता होकर  आओ  कभी  वैश्याओं  की गलियों से वहां भोजन मिलता है कभी नास्ता नहीं होता। ख़्वाब मुकम्मल होते हैं तक़दीर की गहराइयों से सिर्फ हथेलियां घिसने से सौदा सस्ता नहीं होता। कसम  है   गर   तुम्हें   एक   बार  भी  मैं  रोकूं मरते  इश्क़  से  मेरा  कोई  वास्ता  नहीं  होता। गर समझती तुम गिड़गिड़ाहट मेरी भी सनम हमारे दरमियां इतना बड़ा हादसा नहीं होता।

कहां लिखा है।

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बिछड़ कर तुमसे तेरा होना कहां लिखा है मेरी किस्मत में अब सोना कहां लिखा है। चाहो  तो  गलियां मेरी भी रोशन हो जाये खुदा वरना अंधेरे को उजाले का होना कहां लिखा है। कही  थी  बगैर  मेरे  मर   तो   नहीं  जाओगे मेरी हालात पर तुम्हें अब रोना कहां लिखा है। मोती  की  तरह  जो  आज बह रहे हो अश्क़ मेरी आँखों का तेरा अब होना कहां लिखा है।

छुवन

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 खुद पर मुझे अब एतबार हो गया तुझे देखा तो  मुझे प्यार हो गया। भले  बाहों से बाहें न मिले  कभी पर नयनों से प्यार बेसुमार हो गया। तुम जिंदगी की सबसे अजीज़ हो तेरी छुवन से मुझे प्यार हो गया।

चाँद की ख्वाइस।

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  चाँद की ख्वाइस न रही मुझको बस पैरों की धूल  बना  लो तुम जिस पर भुलाई हो सारी दुनिया वही छोटी सी भूल बना लो तुम। सात जन्मों का साथ न चाहिये मुस्कुराने का मूल बना लो तुम हंस  के  खाई हो बहुत गोलीयां उन सबका कैप्सूल बना लो तुम।

कभी तो याद मुझे भी करोगी।

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  कभी तो याद मुझे भी करोगी देखूंगा फिर कैसे तुम रहोगी। समझता हूँ कि जान हो मेरी कभी तो मुझे आप समझोगी समझोगी जान जिस दिन मुझे देखूंगा कैसे जान के बगैर रहोगी। लत तुम्हारी है जो मुझको सनम आज दर- ब- दर मैं भटकता हूँ हो जाएगी जिस दिन लत हमारी देखूंगा जितनी सयंमित रहोगी। मज़बूर हूँ आज अपने दिल की  बेवजह सूनसान चाहतों से सनम एक बार इश्क़ तुम्हे भी हो जाये देखूंगा कैसे महबूब के बगैर रहोगी।

वापसी

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  जिम्मेदारियों  के  ऐसे  शिकंजे  में  फंसे की चूड़ी और कंगन भी हमें रोक न सके। कमाये  बहुत  टुकड़े  कागजों  के  मगर चैन - ओ - सुकून  हम  खरीद  न  सके। दबे पांव बीत गयी  छुट्टियां  दीवाली की हम नयनों को भी ठीक से सींच न सके।

उतरते गये उसके तन से कपड़े सारे।

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 उसकी यादों का बाज़ार बहुत गरम था बदन का कोना कोना बहुत ही नरम था उतरते गये उसके  तन  से  कपड़े  सारे शाम मदहोश थी,  मैं बहुत बेशरम था।

मानता हूँ की चूड़ियों में खनक बहुत थी।

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 मानता हूँ की चूड़ियों में खनक बहुत थी उलझी  हुयी  जुल्फों  में महक बहुत थी छोड़  न  देता  उसे  तो  करता  भी क्या पढ़ने की  तब  मुझमें  सनक  बहुत  थी।

ख्वाबों के महल झोपड़ी में दफन हो गये।

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 ख्वाबों  के  महल   झोपड़ी   में   दफन  हो  गये छोटी  उम्र  में  जिम्मेदारियों  के  सिकन  हो गये किसी  और  के  हालात  ही  क्या  बयां करें हम अपनी  गर्मी के कम्बल शर्दियों के कफन हो गये।

सुंदरता।

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 जितनी   तन    से   सुंदर  उतनी  ही  मन  से  सुंदर लगता  है  जैसे  कि  तुम हो  सुंदरता  का  समंदर। जितनी  आचार की सुंदर उतनी ही विचार की सुंदर लगता   है  जैसे  कि  तुम  हो सुंदरता  के अंदर सुंदर।        "दरिया"

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